कहते हैं ना कामयाबी पाने के लिए हुनर को पहचानना जरूरी होता है। कई लोग बहाने को आड़ बनाकर वक्त बर्बाद करते हैं और अपने हुनर के साथ न्याय नहीं कर पाते हैं। और कुछ ऐसे होते हैं जो छोटी सी उम्र में खुद के हुनर से परिचित हो जाते हैं, और निकल पड़ते हैं उसे मजबूत करने की दिशा में… 23 साल के हिमांशु पंत के साथ भी ऐसा ही हुआ। अपने हुनर को सही दिशा देकर वो दूसरों के लिए प्रेरणा बन गए हैं। हिमांशु ने उत्तराखंड की पारंपरिक कला ऐपण के ज़रिए वो काम किया जिससे उन्होंने खूब सुर्खियां बटोरीं हैं। हिमांशु ने ऐपण आर्ट को ऐसी पुरानी चीज़ों पर उकेरा जिससे उनकी खत्म होती कीमत या यूं कहें कि कबाड़ कही जाने वाली वस्तुओं का रंग निखर गया और वो एंटीक और लोक कला के मिश्रण से चमक उठीं।



हिमांशु पन्त तिमला डिग्गी रानीखेत के रहने वाले हैं। पहाड़ों में ही उनका जीवन बीता है और वो उसकी सुंदरता के काफी करीब हैं। हिमांशु को ऐपण कला अपनी ओर आकर्षित करती थी लिहाज़ा उन्होंने इसी क्षेत्र में काम करने का फैसला किया। वो इस कला पर पिछले 8 महीने से काम कर रहे हैं और पहाड़ में रहते हुए रोजगार के पैदा कर रहे हैं। हिमांशु कहते हैं कि
मैं पहाड़ से दूर नहीं रह सकता और अपनी इस ऐपण कला के दम पर ना सिर्फ अपने लिए बल्कि दूसरों के लिए भी रोजगार के अवसर पैदा करना चाहता हूं।


हिमांशु के पास काफी पुराने वस्तुओं का कलेक्शन हैं। लोग उन्हें बेकार या फिर कबाड़ भी कह सकते हैं, लेकिन हिमांशु ने अपनी ऐपण कला से उसे नया रूप दे दिया है। उन्होंने पुराने जमाने की लालटेन, भारी पीतल के पुराने गिलास, घांन, “नेवर” (बैल के गले में बांधने वाला घंटा), खुखरी, कस्यर (60 साल पुराना बर्तन जिसमें पानी भरा करते थे), कलश, शुफ़ (दाल,चावल छाटने वाला यंत्र, पुराने ज़माने की चाय की केतली, लंफु (उजाला करने वाला), खिनोड़ (भट्ट और जौं को पीटने वाला यन्त्र), न्यसूड़ (किसान के हल के नीचे लगने वाला यन्त्र), पुराने ज़माने के हुक्के और चीड़ के ठिटो, व कुछ बड़े फ्रेम्स बनाये है जिसमें मुख्यतः श्री यंत्र, गणेश चौकी, छोलिया नृत्य करती हुई टोली, सूर्यमुख, गणेशमुख व नाच करता हुआ छोल्यार भी है। ये बर्तन 60-70 साल पुराने हैं। अपनी कला के जरिए हिमांशु इन्हें मार्केट में पेश कर दिया है और लोग इसे खरीदने के लिए रूचि भी दिखा रहे हैं। हिमांशु का फेसबुक समेत सभी सोशल मीडिया चैनल पर devbhoomi_Creations नाम से पेज है और यहां से ऑनलाइन ऑर्डर लिया जाता है।



हिमांशु ने बताया कि मैं तिमला डिग्गी, ताड़ीखेत व बिनसर महादेव रानीखेत दोनों जगहों से काम करता हूँ। जैसे मैंने देखा है कई जगह की यहाँ की संस्कृति, सभ्यता, कुमाउँनी बोली विलुप्त होती जा रही है और इसलिए मैंने इस क्षेत्र में काम करने का फैसला किया।