

उत्तराखंड को पलायन का रोग वर्षों से लगा हुआ है। इस बीमारी से जीत हासिल करने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। पहाड़ी इलाकों में सुविधाओं के अभाव के चलते उत्तराखंड को जीत तो नसीब नहीं हुई है लेकिन युवाओं की सोच में बदलाव देखने को मिल रहा है। वो केवल पलायन की बात करके अफसोस नहीं करते हैं बल्कि कुछ नया करने पर विश्वास रखते हैं। ऐसे कई उदाहरण आप लोगों के सामने हमने पेश किए हैं। युवाओं ने पलायन की जड़ यानी नौकरी के लिए कुछ स्टार्टअप खोले हैं और स्थानीय लोगों को रोजगार दिया है। अगर ये काम बड़ी संख्या में शुरू हो पाता है तो उत्तराखंड जल्द पलायन के खिलाफ जीत हासिल करने में कामयाब होगा।
हम युवाओं की कई प्रेरणादायक कहानियां पढ़ते हैं कि अपने शौक के लिए नौकरी छोड़ दी, उनके लिए फैसला करना महिलाओं की तुलना में आसान रहता है ये मैं यानी लेखक बतौर युवक कह रहा हूं। लेकिन महिलाओं के लिए बिल्कुल भी आसान नहीं हैं। महिलाओं के खुले विचारों को अभी भी जगह तवज्जों नहीं दी जाती है तो महिलाओं को नौकरी छोड़ खुद का कुछ शुरू करने का सोच सकती हैं, ये सोच कई सैकड़ों ने महिलाओं ने अपनी नई सोच को आगे नहीं बढ़ने दिया होगा लेकिन चमोली जिले की देवेश्वरी बिष्ट के साथ ऐसा नहीं था। उन्होंने अपनी नौकरी केवल इसलिए छोड़ दी क्योंकि वह पलायन के खिलाफ अपनी भागीदारी पेश करना चाहती थीं। अपने सोच को अपने कर्म में परिवर्तन करके उदाहरण पेश करना चाहती थी ताकि युवा प्रभावित होकर शहर का रास्ता नहीं पहाड़ में रहकर अपनी कामयाबी की स्क्रिप्ट लिखें। इसके लिए उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी, वह पेशे से अपर अभियंता थी। देवेश्वरी बिष्ट ने सभी का फेवरेट और सबसे कठिन फील्ड चुना। अब वो दुनिया के सबसे मुश्किल काम यानी ट्रैकिंग में अपना भविष्य बना रही है।
ऐसे ट्रैकिंग बना प्यार
देवेश्वरी बिष्ट एक आम परिवार से तालुक रखती हैं। उनकी दो बहनें और एक भाई हैं। उन्होंने अपने स्कूल की पढ़ाई गोपेश्वर से की जहां की वह रहने वाली हैं। इंटर के बाद उन्होंने इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया । साल 2009 में ग्रामीण पेयजल एवं स्वच्छता परियोजना में जल संस्थान, गोपेश्वर में अवर अभियंता के रूप में उनकी नौकरी लग गई। सरकारी नौकरी होने के वजह से उन्होंने अपर अभियंता के रूप में चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी जैसे दुर्गम इलाकों में भी सेवाएंं दीं।
देवेश्वरी बिष्ट बचपन से ही प्रकृति के काफी करीब थी। गोपेश्वर से दिखने वाली नंदा की बर्फीली चोटी उन्हें हर वक्त उत्साहित रखती थी। बता दें कि इस चोटी की एक खास वजह है, जिस कारण से इसने लाखों लोगों को अपना दीवाना बनाया हुआ है। यह हर मौसम में अलग-अलग आकृतियों में नजर आती है। पहाड़ों की संस्कृति और हरियाली को देवेश्वरी ने कभी अपने से दूर नहीं होने दिया। नौकरी के चलते वह दूसरों जिलों में भी गई तो उनका प्यार और करीब आता चला गया। वह ट्रैकिंग और फोटोग्राफी के लिए वक्त निकलाने लगी। कहते हैं ना अगर किसी चीज को शिद्दत से चाहा जाए तो कायनात में भी उसे मिला देती हैं, ऐसा ही हुआ देवेश्वरी के साथ। उनका मन पहाड़ी की हरियाली की ओर झुकने लगा तो उन्होंने साल 2015 में नौकरी छोड़ पहाड़ की सेवा करने का फैसला किया। देवेश्वरी का फैसला आसान नहीं रहता है, जो नौकरी उन्होंने छोड़ी उसकी कल्पना करने वालों की संख्या करोड़ों में होगी।
ट्रैकिंग का सफर और करियर
अपने पहले प्यार ट्रेकिंग के जरिए वह पहाड़ में पलायन पर चोट मारना चाहती थी। उनका मानना था कि अपने स्वरोजगार से दूसरों को काम देना सबसे अहम हैं। वो एक ट्रैव्लर बन गई।
नौकरी छोड़ने के बाद से वह इन पांच वर्षों में एक हजार से अधिक लोगों को हिमालय की वादियों की सैर करवा चुकी हैं। इस लिस्ट में पंचकेदार, पंचबदरी, फूलों की घाटी, हेमकुंड, स्वर्गारोहणी, कुंवारी पास, दयारा बुग्याल, पंवालीकांठा, पिंडारी ग्लेशियर, कागभूषंडी और देवरियाताल शामिल हैं। कहते हैं ना कामयाबी टीम के साथ मिली है तो उसकी गूंज और दूर तक सुनाई देती हैं। देवेश्वरी ने अपने काम में अपने हर ट्रैक के दौरान स्थानीय गाइड, पोर्टर के रूप में स्थानीय लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार दिया । देवेश्वरी ने पहाड़ों, पहाड़ी फूलों, बुग्यालों, नदियों, झरनों, लोक रंजक कार्यक्रमों का अदभुत 10 हजार से ज्यादा फोटोज़ का कलेक्शन एकत्र किया है।
उत्तराखंड का ‘ग्रेट हिमालयन जर्नी’ पोर्टल है और इसी नाम से उनका फेसबुक पेज भी है। वह इनमें अपने टूर व ट्रैकिंग की गतिविधियों के बारे में पोस्ट करती है। उन्होंने इन सालों में बतौर फोटोग्राफर भी अपने आप को निखारा है। देवेश्वरी पहाड़ के प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक विरासत को भी अपने कैमरे में बड़ी खूबसूरती से कैद कर लेती हैं। इसके बाद उन फोटो को देश-दुनिया के पर्यटकों को दिखाकर उन्हें पहाड़ आने के लिए आकर्षित करती हैं।
यद्यपि आज भी उनके पास कमोबेश रोजाना ही इंजीनियर की नौकरी के बड़े-बड़े पैकेज ऑफर होते रहते हैं। वह बताती हैं कि उन्होंने जब अपर अभियंता की सरकारी नौकरी छोड़ी तो सबसे पहले उन्हे आगे की राह तय करने के लिए अपने घर-परिवार से हौसला मिला। अब तो वह बेहद खुशनसीब बेटी हैं। उन्होंने इस उद्यम को इसलिए भी चुना कि उनसे प्रेरित होकर आज के युवा अपने खूबसूरत पहाड़ों, झरनों, नदियों, फूलों के बाग-बगीचों को ही अपना पेशा बनाएं, न कि यहां से पलायन करें।