ज़िद्दी होना भी अच्छा होता है। किसी मिशन के लिए, किसी हरसत के लिए, किसी सपने के लिए, किसी अपने के लिए – जिद्दी होना वाकई अच्छा होता है। ऐसी ही ज़िद पाली थी वंदना चौहान ने, कलेक्टर बनने की। और उसी ज़िद ने उनकी ख्वाहिश को हकीकत में बदल दिया। जी हां, वंदना चौहान को उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में नई ज़िम्मेदारी सौंपी गई। वो अब रुद्रप्रयाग ज़िले की जिलाधिकारी नियुक्त हुई हैं।


पिथौरागढ़ के गांवों में लोकप्रिय चेहरा हैं वंदना
वंदना वर्तमान में पिथौरागढ़ के मुख्य विकास अधिकारी के पद पर मौजूद हैं। वंदना मूल रूप से हरियाणा की रहने वाली हैं। अपनी कार्यशैली की वजह से पिथौरागढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों की गरीब महिलाओं में उनकी लोकप्रियता बढ़ी। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान में वंदना को पिथौरागढ़ डिस्ट्रिक्ट एम्बेसेडर चुना गया था जिसके लिए उनहोंने कई सरहानीय कार्य भी किए। उन्होंने पिथौरागढ़ के गांव-गांव में अपनी मज़बूत पकड़ बनाने के लिए हर संभव प्रयास किए और सफल भी रहीं। उनकी लोकप्रियता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ग्रामीण महिलाओं के लिए वो उनके परिवार का हिस्सा रहीं। महिला स्वयं सहायता समूहों को सक्रिय करने में वंदना ने विशेष योगदान निभाया। महिलाओं के बीच जाकर उन्हें प्रोत्साहित करना हो या फिर महिलाओं को आजीविका चलाकर आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रयत्नशील होना हो, वंदना ने हमेशा अपनी ज़िम्मेदारियों को खुद से ऊपर रखा। वंदना हमेशा से मानती हैं कि पहाड़ी क्षेत्रों में विकास का रास्ता गांव की मज़बूत बुनियाद से ही तय होगा और इसके लिए उन्होंने हर संभव प्रयास किए जिसका नतीजा सबके सामने आया भी। सीडीओ रहते हुए वंदना ने कई राष्ट्रीय पुरस्कार जीते और विकास का नया अध्याय लिखा। उनकी इसी सोच की वजह से उन्हें प्रोमेशन के तौर पर रुद्रप्रयाग ज़िले के ज़िलाधिकारी की ज़िम्मेदारी सौंपी गई।


साधारण परिवार से IAS बनने तक का सफर
वंदना का जन्म 4 अप्रैल, 1989 को हरियाणा के नसरुल्लागढ़ गांव के एक बेहद पारंपरिक परिवार में हुआ। रिपोर्ट के मुताबिक उनके घर में लड़कियों को पढ़ाने का चलन नहीं था। यहां तक कि उनकी पहली पीढ़ी की कोई लड़की स्कूल नहीं गई। वंदना की शुरुआती पढ़ाई गांव के ही सरकारी स्कूल में हुई। IAS वंदना के पिता का नाम है महिपाल सिंह चौहान। पिता कहते हैं, ‘‘गांव में स्कूल अच्छा नहीं था, इसलिए बड़े बेटे को पढऩे के लिए बाहर भेजा था। बस, उस दिन के बाद से वंदना की भी एक ही रट थी- मुझे कब भेजोगे पढऩे।’ दसवीं के बाद ही वंदना ने अपनी मंजिल तय कर ली थी। उस उम्र से ही वे कॉम्प्टीटिव मैग्जीन में टॉपर्स के इंटरव्यू पढ़तीं थी। बारहवीं तक गुरुकुल में पढ़ने के बाद वंदना ने घर पर रहकर ही लॉ की पढ़ाई की। गुरुकुल में सीखा हुआ अनुशासन IAS की तैयारी के दौरान काम आया और वंदना ने अपना मुकाम हासिल कर लिया।

