सफलता एक दिन में हासिल नहीं होती। निरंतर प्रयासों और मेहनत के बूते ही इसे हासिल किया जा सकता है। इसी तरह की अथाह मेहनत कर उत्तराखंड के सीमांत जिले चमोली के ‘जोशीमठ’ क्षेत्र के 12 गांवों की 54 महिलाओं ने अपनी जिन्दगी गुलाब के फूलों सी महका ली है। जी हां, इन महिलाओं ने गुलाब की खेती करके आर्थिक सशक्तीकरण की ऐसी मिसाल कायम की है, जिसने गांव में खुशियाली ही खुशियाली ला दी है। इस मुहिम में देहरादून स्थित ‘सगंध पौधा केंद्र’ (कैप) ने इन महिलाओं की जिन्दगी में परिवर्तन लाने में काफी मदद की। गुलाब की खेती से आज ये महिलाएं जल, तेल व प्लांटिंग मटीरियल से 10 से 12 लाख की सालाना की आमदनी कमा रही हैं।
गुलाब की खेती से यहां की महिलाओं की ज़िन्दगी ही बदल गई है।‘परसारी’ की कमला देवी कहती हैं-
‘गुलाब की खेती ने हमारे जीवन में गुलाब की महक घोल दी है। इससे हमें भारी मुनाफा हो रहा है और इसकी वजह से हमारी आर्थिक स्थिति अच्छी हो गई है। हमारे लिए यह गौरव की बात है कि स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जोशीमठ की महिला किसानों द्वारा तैयार गुलाब तेल की सराहना की है’।


गौरतलब है कि जिस क्षेत्र से ये महिलाएं आती हैं वहां की परिस्थितियां विषम हैं। उत्तराखंड के इस पर्वतीय क्षेत्रों में लोगों के पलायन, मौसम, वन्यजीव समेत अन्य विभिन्न कारणों से खेती सिमटी हुई है। ऐसे में इन दुर्गम इलाकों में लोगों के लिए कौन सी खेती फायदे का सौदा होगी इस पर काफी शोध और चर्चा हुई। पलायन की समस्या के निदान भी इस खेती से हो सकें इस विषय को भी मुखर रूप से उठाया गया। इसके लिए सगंध खेती को विकल्प चुना गया और चमोली के जोशीमठ क्षेत्र में यह जिम्मा ‘सगंध पौधा केंद्र’, कैप को सौंपा गया। कैप ने क्षेत्र के भूगोल के हिसाब से डेमस्क गुलाब की नूरजहां, च्वाला व हिमरोज प्रजातियों का चयन किया और 2005 में मेंड़ों पर बाउंड्री फसल के रूप में खेती शुरू करने की पहल की। इसके लिए क्षेत्र की महिलाओं को प्रोत्साहित किया गया।


ध्यान देने वाली बात ये है कि सबसे पहले उत्तराखंड के सीमांत चमोली जिले के जोशीमठ के ग्राम प्रेमनगर- परसारी और मेरंग में बाउंड्री फसल के रूप में गुलाब के पौधों का रोपण किया गया। इसमें महिलाओं की भागीदारी काफी अहम रही। धीरे धीरे महिलाएं जुड़ती चली गई और फिर कारवां के रूप में इन महिलाओं ने मिलकर यहां की दशा और दिशा ही बदल दी। गुलाब की पौध रोपने के बाद दो साल बाद पौधों पर फूल आने लगे और फिर महिला किसानों ने इससे गुलाब जल तैयार करना शुरू कर दिया। आज डेमस्क रोज के लिए जोशीमठ एक क्लस्टर के तौर पर विकसित हुआ है और वहां के परसारी, गणेशपुर, मेरंग, रैंणी, सलधार, औली, सुनील, बड़ागांव, करछी, तपोवन, द्वींग समेत 12 गांवों के 90 लोग गुलाब की खेती से जुड़े हैं, जिनमें 54 महिलाएं हैं।

