उत्तराखंड पलायन का दंश लंबे वक्त से झेल रहा है। इसके पीछे उन युवाओं की नकारात्मक सोच छुपी है कि यहां रहकर कुछ नहीं किया जा सकता। लेकिन कुछ ऐसे भी लोग हैं जो अपने हौसले से चट्टानों की चूर-चूर करने का हौसला रखते हैं। ये कहानी एक ऐसे युवा की है जो आम पहाड़ियों की ही तरह नौकरी करने बड़े शहर में जाता तो है लेकिन कड़ी मेहनत और ईमानदारी से हासिल कुछ भी नहीं हुआ। लेकिन संदीप गोस्वामी नाम के इस शख्स ने हार से अपना नाता जोड़ लिया और उसे हरा कर ही दम लिया।
बड़े शहरों की नौकरी ने तोड़ी उम्मीद
संदीप ने अपना मुकाम खुद हासिल किया है। रुद्रप्रयाग जिले के अगस्त्यमुनि शहर के पास हाट गांव के रहने संदीप गोस्वामी आज किसी मिसाल से नहीं। मंदाकिनी नदी के किनारे बसे इस गांव के लड़के ने अपने परिवार को खुश करने के सपने देखे। इसी सपने को पूरा करने के लिए वो दिल्ली भी गए। दिल्ली में दो साल कर नौकरी के दंगल में खुद को झोंक कर भी उन्हें कुछ भी हासिल नहीं हुआ। जिन्दगी का संघर्ष अब भी जारी था। क्योंकि जो सैलरी उन्हें दी जा रही थी उससे ना तो संदीप का रहन सहन ठीक हो पा रहा था और ना ही परिवार को वो पैसे भेज पा रहे थे। संदीप की ना तो जेब भर रही थी और ना ही उनको उनके मुताबिक का काम मिला था। लिहाज़ा कुछ और महीने वो दिल पर बोझ लिए काम करते गए और साथ उन्होंने अपना दिल भी पक्का कर लिया। आखिरकार उन्होंने नौकरी छोड़कर अपने गांव की राह पकड़ ली।
अपनी लगन से गांव में शुरु किया मुर्गी पालन
दिल्ली से रवानगी के वक्त संदीप ने मन में ठान लिया कि वो अब जो कुछ भी करेंगे अपने गांव अपने पहाड़ में रहकर करेंगे। संदीप ने एक प्लान बनाया। उन्होंने स्वरोजगार के साथ-साथ ही अच्छी आमदनी भी हो सके, ऐसा बिज़नेस मॉडल तैयार करने की सोची। साल 2013 में संदीप ने घर लौटने के साथ ही अपने गांव में सबसे पहले मुर्गी पालन का काम शुरू किया। 2 साल बाद अथाह मेनहत के बाद उन्हें दिल्ली में मिलने वाली सैलरी से ज्यादा आमदनी होनी शुरु हो गई। यहीं से उनके हौसले को जैसे पंख मिल गए। संदीप को मिली इस छोटी सी सफलता ने उनकी छोटी आंखों के सपनों को और भी बड़ा कर दिया।
आमदनी से और बड़ी हुई सोच
मुर्गी पालन के साथ साथ उन्होंने फिर दूसरे प्रयोग करने शुरु किए। मुर्गी पालन में अच्छी आमदनी के बाद उन्होंने गांव में डेयरी फार्म का काम शुरू करने की सोची। बैंक से कुछ लोन लेकर संदीप ने डेयरी के काम में अपना हाथ डाला। हालांकि इस काम में तकनीकी दक्षता की आवश्यकता होती है लेकिन कहते हैं ना कि जहां चाह वहां राह। संदीप के इस डेयरी के काम में मदद मिली पशु चिकित्सा अधिकारी रमेश नितवाल की। जिन्होंने उन्हे होलिस्टन फिजियन नस्ल की गायें रखने की राय दी। उसके बाद इसी नस्ल की एक दर्जन गायें संदीप ने खरीद लीं। एक गाय उन्हें एक समय में 10 से 12 लीटर दूध दे रही है इस हिसाब से वो हर दिन लगभग 100 लीटर दूध मार्केट में सप्लाई करते हैं। ताज़े और शुद्ध दूध की खपत इतनी है कि गांव में ये दूध भी कम पड़ जा रहा है। मुर्गी पालन के बाद संदीप का डेयरी का काम भी चल निकला। दोनों ही उद्योगों से संदीप की आमदनी उम्मीद के कहीं ज्यादा होने लगी। इस आमदनी के साथ साथ संदीप का अपने गांव के लोगों को रोज़गार देने का भी सपना पूरा हो गया। संदीप के साथ आज 8 लोग काम करते हैं जिन्हें संदीप ने खुद सैलरी पर रखा है।
ज़ाहिर है अपनी सैलरी से कभी अपना और अपने परिवार का पेट पालना मुश्किल था अपने चट्टानी इरादों से संदीप ने आठ परिवारों का ज़िम्मा उठा रखा है। उम्मीद है कि संदीप आगे भी कई लोगों को इस रोजगार से जोड़ेंगे। मेहनत औऱ ईमानदारी दो ऐसी चीजें है जो इंसान को जिंदगी में कामयाबी दिलाती है। अपन गांव के साथ साथ आसपास के गांवों के लोगों के लिए इसकी मिसाल बन चुके है संदीप गोस्वामी।ज़ाहिर है संदीप की ये कहानी रोजगार के लिए धक्का खा रहे उन युवाओं को ज़रूर प्रेरित करेगी जो नौकरी के लिए बड़े शहरों का रुख तो करते हैं लेकिन उन्हें चंद रुपयों के लिए घरबार तक छोड़ना पड़ जाता है और ज़रुरतें तो छोड़िए अपना खर्चा उठाना भी मुश्किल पड़ जाता है।