

इंसान को बनाया ही इस तरह से गया है कि उसे, नकारात्मकता के साथ साथ सकारात्मकता में भी भी नकारात्मकता की झलकियां दिखें और भयभीत हो कर, एक अच्छे खासे कार्य को छोड़ दे। लोग अक्सर यही करते दिखते हैं, ख़ास कर हमारे पहाड़ों में। पलायन का मुद्दा बीते कुछ वर्षों में ऊंचाई पर ऐसे ही नहीं पहुंचा, उसे पहुंचाया गया है नकारात्मकता ने। लोग अपना कुछ भी शुरू करने से पहले ही घबरा जाते हैं। शायद कोरोना महामारी नहीं आई होती तो बाहर शहरों में पैसे ढूंढने गए उत्तराखंड वासी भी अपने प्रदेश में वापसी करते नहीं दिखते। सकारात्मक दृष्टि से देखें तो कोरोना के आने से एक चीज़ तो अच्छी हुई हैं। पहाड़ से बाहर गए लोग, पहाड़ लौटे और लौटने के साथ साथ आत्मनिर्भर होने की तरफ भी अब बेहतर कदम उठा रहे हैं। उत्तराखंड में कई लोग ऐसे हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों में रह कर आत्मनिर्भर भारत के नारे को बढ़ावा दे रहे हैं और अपने अपने साथ साथ कई लोगों को आर्थिक मजबूती प्रदान कर रहे हैं। लोगों के बीच यह धारणा थी कि गांव, पहाड़ों में रहकर ज़्यादा पैसा नहीं कमाया जा सकता, जो अब बदल रहा है। पहाड़ी क्षेत्र के लोग भी अच्छी आय प्राप्त कर रहे हैं। ऐसी ही एक मिसाल हैं नौगांव, उत्तरकाशी के हरदेव सिंह राणा।
उत्तराखंड में स्वरोजगार की बेहतरीन मिसाल पेश करने पर हरदेव सिंह को उद्योग विभाग, उत्तरकाशी की ओर से प्रथम पुरस्कार मिल चुका है। हरदेव सिंह राणा तकरीबन 15 वर्षों तक सामाजिक संस्था सिद्ध मसूरी में काम किया जिसके बाद वे 2006 में नौगांव ब्लॉक के खांशी गांव लौटे। और तभी से उन्होंने आत्मनिर्भरता की यात्रा की शुरुआत की। उन्होंने ग्रामीण स्तर पर ही स्थानीय उत्पादों को खरीदना शुरू किया। नौगांव में हिमालय रवाईं हाट के नाम से एक दुकान खोली और दुकान में स्थानीय उत्पादों को बेचकर उन्होंने व्यवसाय शुरू किया। मौजूदा समय में वह महीने का तकरीबन 40 हजार रूपए तक कमा लेते हैं। स्वरोजगार की ओर बेहतरीन प्रयासों और अन्य लोगों की प्रेरणा बनने के बाद हरदेव सिंह को उत्तरकाशी के उद्योग विभाग की ओर से स्वरोजगार मिशन चलाने पर प्रथम पुरस्कार भी प्राप्त हो चुका है।
हरदेव सिंह राणा ने स्वरोजगार का यह मौका केवल खुद तक सीमित ना रख कर, गांव के अन्य लोगों को भी इसमें शामिल कर लिया है और वे वर्तमान में काफी लोगों को रोजगार प्रदान भी कर रहे हैं। यह अनोखा आइडिया उनके दिमाग में तब आया जब वह गांव से दूर शहर में कार्य कर रहे थे। ऐसा कतई नहीं है कि हरदेव सिंह के लिये रास्ता बहुत आसान रहा। शुरुआत में उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा लेकिन धैर्य और हौसले से काम ले कर वे आज यहां तक पहुंचे हैं। हरदेव सिंह राणा ने ना सिर्फ व्यवसाय में बल्कि पढ़ाई में भी काफी बड़े मुकाम हासिल किये हुए हैं। अर्थशास्त्र से पोस्ट ग्रेजुएट, हरदेव सिंह 1988 से 1992 तक सरस्वती शिशु मंदिर नौगांव में अध्यापक भी रह चुके हैं। उसके बाद 1992 से लेकर 2006 तक वे सिद्ध संस्था मसूरी में कार्यरत थे। समाज सेवा भी एक ऐसा माध्यम है जिसमें हरदेव सिंह हमेशा से आगे रहे हैं। इस काम से पहले उन्होंने शिक्षा, कृषि, महिला उत्थान और गांव में ही आजीविका बढ़ाने को लेकर काम किया है।
हरदेव सिंह राणा अपनी नौगांव स्थित दुकान में जो सामान रखते और बेंचते हैं, उसकी सूची इस प्रकार है।
मंडुवा, जौं, राजमा, झंगोरा, कौंणी, , गहत, छेमी, मसूर, सोयाबीन, जख्या, तिल, धनिया, मिर्च, मेथी, मक्की। दलहन बीज में राजमा, छेमी, लोबिया, गहत, सोयाबीन, काले सोयाबीन, बीन समेत बेलदार सब्जियों के बीज भी उपलब्ध हैं। इसी के अलावा वे बुरांश, गुलाब, पुदीना, आंवाला, नींबू, माल्टा, अनार, सेब के जूस के साथ आम, मिक्स अचार, लहसुन, करेला आदि के अचार भी दुकान में रखते हैं। वहीं अन्य उत्पादों में स्थानीय स्तर पर तैयार किए गए घिलडे, रिंगाल की टोकरी, सूप, फूलदान, आदि सामान उपलब्ध हैं। हरदेव सिंह राणा बताते है कि उनके इस स्वरोजगार में उनकी पत्नी कमला राणा भी शामिल हैं और वे भी इसमें उनकी काफी सहायता करती हैं।