उत्तराखंड में सरकारी स्कूलों की हालत कौन नहीं जानता, ऊपर से दुर्गम स्थानों के स्कूल तो माशाल्लाह हैं। कहीं भवन जर्जर हैं, तो कहीं शिक्षक नहीं, कहीं ये दोनों हैं तो बच्चे नहीं। वास्तविकता तो ये है कि दुर्गम स्थानों के स्कूलों में शिक्षक जाने से बचता है वो पहाड़ों पर टिकने के बजाए मैदानी स्कूलों में नौकरी करना ज्यादा पसंद करता है। लेकिन इन्हीं हालातों से लोहा लेने के लिए कुछ शिक्षक जागरुक हैं। जो ऐसे दुर्गम स्थानों के स्कूलों में बदहाल शिक्षा की तस्वीर बदलने में अपनी ताकत झोंक रहे हैं। भास्कर जोशी ऐसे ही एक मेहनतकश शिक्षक हैं जिन्होंने दुर्गम स्थान के स्कूल को खुद चुना और अपनी थ्योरी से उस सरकारी स्कूल की कायापलट कर दी। उनके इस उत्कृष्ट कार्य के लिए उन्हें केन्द्र सरकार ने नवाचारी अवॉर्ड से सम्मानित भी किया।
अपनी मेहनत से पलट दी स्कूल की काया
भास्कर जोशी जैसे शिक्षकों में ही पहाड़ के भविष्य की उम्मीद दिखाई देती है। भास्कर जोशी अल्मोड़ा के राजकीय प्राइमरी स्कूल बजेला में पोस्टे हैं। पहले ही दिन से भास्कर ने इस स्कूल को अपनी थ्योरी से बदल डालने की कसम खा रखी है। और देखते ही देखते ये मामूली सा दिखने वाला प्राइमरी स्कूल आज किसी मॉर्डन स्कूल से कम नहीं लगता। भास्कर जोशी की मेहनत का अंदाज़ा इसी बात से लगाइए कि उन्होंने इस स्कूल की तस्वीर बदलने के लिए दिन-रात एक कर दिया। उन्होंने इस स्कूल की बेहतरी के लिए मॉडल तैयार किए ताकि वो उन्ही मॉडल को धीरे-धीरे लागू कर इस स्कूल की किस्मत चमका सकें। भास्कर की मेहनत का रंग बहुत जल्द ही दिखने लगा। आज बजेला गांव के इस स्कूल में स्मार्ट क्लास है, कंप्यूटर्स है, खेलकूद का सामान, प्रोजेक्टर पर पढ़ाने की व्यवस्था और शुद्ध पेयजल की उपलब्धता भी है। स्कूल की तस्वीर बदलते ही बच्चों की संख्या भी बढ़ने लगी। गांव का हर बच्चा इतनी सुविधाएं देख कर स्कूल जाने के लिए प्रेरित होने लगा।स्कूल की कायापलट ने खूब सुर्खियां बटोरीं और शिक्षक भास्कर जोशी की सोच को कई सलाम मिलने लगे। यही नहीं भास्कर जोशी ने गांव की शिक्षित बेटियों को रोजगार भी दिया है। ये बेटियां गांव के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती हैं। जिन्हें डेढ़-डेढ़ हजार रुपये मानदेय भी दिया जाता है।

